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कहीं पर बांसुरी बजती, कहीं पर रास होता है।
हमारे उर बसी धुन का, मधुर अहसास होता है।
कभी मटकी नयी फोड़ी, कभी माखन चुराया है।
कन्हैया लाल को फिर भी, सभी ने उर बसाया है।
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यहां पर प्रेम में राधा , सभी हैं चाहतीं बनना।
सिया बनना नहीं चाहें, न चाहें राम सा सजना।
अजब ये प्रेम कलयुग का, फरेबी सा लगे ज्यादा,
सिया का प्रेम जो पाये, लगे फिर प्रेम सब अदना।
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मिलें श्री राम तो कहना , सिया तुम बिन अधूरी है।
हुई क्या भूल है मुझसे, पिया कैसी ये दूरी है।
विरह में कट रहे हैं दिन, तुम्हारे बिन चले आओ,
न अब जीना जरूरी है, न अब मरना जरूरी है।
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गली,हर मोड़, नुक्कड़ पर,शहीदों की निशानी हो।
हमारे गीत, ग़ज़लों में, शहीदों की कहानी हो।
भगत सुखदेव किस्सा हैं, शहादत की लड़ाई का,
शहीदों के शहादत की, कहानी बस ज़ुबानी हो।
ये पुलवामा शहीदों के शहादत की कहानी है।
हमें यह फरवरी हरगिज, नहीं चौदह भुलानी है।
मगर जो भूल जाते हैं, शहीदों की शहादत को,
वही पत्थर दिलों के हैं, उन्हीं का खूंन पानी है।